उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर इतिहास अपने को दोहरा रहा है। एक तरफ 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ आई भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार अपने चुनावी वादों और पांच साल के कामकाज को लेकर चार महीने बाद जनता के बीच जाने वाली है तो दूसरी तरफ करीब 25 सालों बाद सामाजिक न्याय के सियासी एजेंडे की वारिस रहे दो दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर हाथ मिला लिए हैं।
1993 में जब इन दलों के संस्थापक नेताओं मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने हाथ मिलाया था, तब दोनों ही दल अपने सियासी बचपन के दौर से गुजर रहे थे और एक दशक से संघ परिवार के अयोध्या आंदोलन, लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्राओं, कारसेवकों पर पुलिस की गोली और अंतत छह दिसंबर 1992 के बाबरी विध्वंस से पैदा हुआ हिंदुत्व के ज्वार और सांप्रदायिक उन्माद अपने चरम पर था। बावजूद इसके तब सपा बसपा गठबंधन ने 1993 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराकर उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी। अब ढाई दशक बाद इन दोनों नेताओं के वारिसों ने फिर भाजपा की नींद उड़ाने वाला गठबंधन कर लिया है।